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गज़ल

क्या गजब का दौर गजब की नीतियाँ चल रहीं है, छ्लें जा रहें युवा ऐसी रीतियाँ चल रहीं है, कोई भूल कर भी रोजी रोजगार की चर्चा न करना राजा...

Sunday 12 August 2018

नीरज

"नीरज का कारवाँ", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/qJHYlVWGfXWI?utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क

Friday 29 June 2018

बाबा की याद

बाबा!
तुम जैसा निडर, साहसिक
और बेबाक व्यक्तित्व
पढ़ने सुनने देखने ,
और समझने को
मुझे आज तक नहीं मिला...
सामाजिक राजनीतिक कुरितियों पर
करारा वार हर बार
आपकी हर कविताओं में
साफ नज़र आता है।
चाहे सत्ता का कोई भी पहरूआ हो
आपकी नजरों में देश का जन सेवक ही तो है भला देश की जनता ने
उसे खुली आजादी दी है?
कि कोई खास जिम्मेदारी दी है?
बाबा!
आपकी नज़र होती तो
जरा ठीक ठीक पहचान करती
और सख़्त एवं कड़ी आलोचना भी करती
कड़ी सज़ा का बन्दोबस्त भी करती
बाबा!
आप जैसे व्यक्तित्व की सख़्त जरूरत है
बाबा!
आप आओगे न !
बाबा!
आप भेजोगे न !
एकदम अपने जैसा व्यक्तित्व!

'बाबा नागार्जुन की जन्म दिन विशेष पर कविता'

नाम - राजू मोर्य,
पता - नई बाजार ,चौरी चौरा ,गोरखपुर
         उत्तर प्रदेश,              
पिनकोड - 273203
मो. -   7518162884

Tuesday 27 March 2018

कर्जदार

क्या करूं यार
मैं भी हो गया कर्जदार
बड़ी मजबूरी में लिया था
उसने भी बड़ी चाव से दिया था
वक्त पे चुका दूँगा कहा था मैंने
वक्त बीत गया
वादा टूट गया
और अकड़ भी
जल्द ही चुका दूँगा
एक वादा फिर किया

मेरी यह कविता आपके पत्रिका में स्थान पाये तो मुझे अपार हर्ष होगा

                                धन्यवाद
                               राजू मौर्य
                      नई बाजार गोरखपुर उत्तर प्रदेश
                       पिनकोड 273203
                       मो.7518162884

Thursday 22 March 2018

पत्थरबाजों

पत्थरबाजों ओ पत्थरबाजों
कल से खुद ही रखवाली करना
अपने अपने बस्ती की
परिचय देना
अपने साहस अपने हस्ती की
जिसने जीनों तक की परवाह न की
तुम्हारी जान बचाने को
मरते दम तक फर्ज़ निभाई
आतंकी गुट मार गिराने को
आज उसी पर पतथरबाजी करते तुम
धूर्त , कायर , देशद्रोही कहलाने को
पत्थरबाजों ओ पत्थरबाजों
           
                                 राजू मौर्य ,
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय,

Tuesday 20 March 2018

हिस्से की रोटी

जिसने पाला उसे आपने भी हिस्से की रोटी देकर
आज उसी ठुकरा दिया किया क्या है कह कर

आज वो दिन याद करके आँखें बरस पड़ी जिसके लिए ता उम्र गालियॉ खाई थी जी भर कर

खूब प्यार करने का गर यहीं सिला है तो
तू कह दे तो तेरी नज़रो से दूर हो जाऊ चाहे मर कर

तू समझ रहा दुनिया तुझे सिर आँखों पे बिठाएगी
जो तू अलग हो रहा है आज मुझे ठुकरा कर

फिर भी जा रास्ते तुझे दूर तक ले जायें
जाने क्यों आज फिर आंखें भर आई दुआ देकर

                                            

गज़ले सियासत

क्या गजब का दौर गजब की नीतियाँ चल रहीं है,
छ्लें जा रहें युवा ऐसी रीतियाँ चल रहीं है,

कोई भूल कर भी रोजी रोजगार की चर्चा न करना
राजाओं को फुरसत कहा अभी रैलियाँ चल रहीं हैं

और बढ़ रहीं हैं भीड़ अब तो हर चौराहों पर
कहीं पे लाठियॉ तो कहीं पे गोलियाँ चल रहीं हैं

गर भूल से युवा हित कोई विज्ञापन भी निकाला तो कोर्ट मे तारिखें और पेशियाँ चल रहीं हैं

खुद को फकीर बता कर्ज हमी से लेकर गये
हमारी ही पूंजी पर महंगी महंगी गाडियॉ चल रहीं
हैं

मेरी यह गज़ल आपके पत्रिका मे स्थान पाये तो मुझे अपार हर्ष होगा (हंस पत्रिका, आज कल)

                                          धन्यवाद,
                                             राजू मौर्य,
                                 

Friday 9 March 2018

कविता

Title:निर्विरोध,

साहित्य जगत के
हर ऊंचे पदों को
आप का इन्तज़ार है
उन्हें निराश नहीं होने देगें
ये तो आप का उपकार है
और
मंजिले भी झूम उठेंगी
आप को पाकर
इसमें कोई जद्दोजहद नहीं
यह तो निर्विरोध स्वीकार है

प्रो. चित्तरंजन जी, अध्यक्ष हिन्दी विभाग
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर ,

इनको साहित्य अकादमी का संयोजक बनाये जाने पर मेरी तरफ से शब्द गुच्छ से स्वागत है

                         राजू मौर्य ,एम .ए . प्रथम वर्ष दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय
मो.7518162884
मेरी कविता आपके पत्रिका मे स्थान पाये तो मुझे और विश्वविद्यालय तथा हिन्दी साहित्य जगत को हर्षित होने का पल और भी मनोरम हो सकेगा ,
                                             धन्यवाद