एक जंगल है तेरी आंखों में
मैं जहां राह भूल जाता हूं
तू किसी रेल सी गुजरती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
तुमको निहारता हूं सुबह से ऋतंभरा अब शाम हो गई
फिर भी मन नहीं भरा
🙏😊☺
मैं जहां राह भूल जाता हूं
तू किसी रेल सी गुजरती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
तुमको निहारता हूं सुबह से ऋतंभरा अब शाम हो गई
फिर भी मन नहीं भरा
🙏😊☺
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